याद आती है उन बीतें दीनो कि, जब माँ क़ि गोद हमारा आँगन थी, जब माँ क़ि बातें हमें सहलाती थी, जब माँ क़ि हसी हमें ज़माने भर कि खुशियाँ दे जाती थी, जब माँ का डाटना भी लगता था उसका प्यार, जब हमारे रूठने पर वो करती थी दुलार, माँ के हाथों में वो ख़न-खनाती चूड़ीयान, आएने पे चिपकी माँ कि वो छोटी सी बिंदियाँ, माँ के सिंदूर कि वो प्यारी सी डिबईयाँ, माँ कि पायल क़ि वो मीठी सी झंकार, माँ के प्यार से सज़ा वो घरबार, माँ क़ि ख़ुशबू से महकता हर कोना, माँ क़ि गोध में वो सर रख कर सोना, याद आती है उन बीतें दीनो की, जब माँ क़ि आह्टो से होती थी हर सुबह, और माँ क़ि लोरियों से होती थी शाम जुदा, जब घनी धूप से बचाता था माँ का आँचल, जब रहती थी वो साथ हर लम्हा, हर पल, ना जाने कहाँ खो गये वो दिन, जब एक पल ना रह पाते थे हम तेरे बिन, आज भी बहुत याद आती है तेरी माँ, तेरे सायँ के बिन, क्या बतायें है हम कितने तन्हा, काश होते हम, आज भी साथ तेरे, तेरे आँगन में खेलते बिल्कुल पहले की तरह, तेरे पहलू में सर रख कर सोते, तुझे गले लगा कर जी भर कर रोते, सुनने को तेरी प्यारी मीठी बातें तरसते है हम, तेरे सीने से लगने को आज भी त...